छवि साभार:शब्दों का सफ़र से |
प्रिय जब प्रेम कुटी में आना
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मन ने संय़म साध लिया है
तुमको भी तो बांच लिया है
अश्रु निवालों के साथी थे
आज नमक ने साथ लिया है
हरियाई है पालक मेंथी-
राह दिखे तो ले ही आना
प्रिय जब प्रेम कुटी में आना
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तुम संग जीवन की वो यादें
रोज रुलातीं थीं मृदु बातें
नीरस था सखियन का संग भी
अब दिन उजला जगमग रातें
अब आओ तो रुक ही जाना
मत कुछ लाना बस तुम आना…
प्रिय जब प्रेम कुटी में आना
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देह नहीं अब मैं प्यासी हूं
सदा सुहागन अभिलासी हूं
जस-अपजस सब भूल बिसर के
अब तो मैं अंतर्वासी हूं
छोड़ो ये बातें गहरीं हैंमुश्किल है सबको समझानाप्रिय जब प्रेम कुटी में आना***************
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
जबलपुर