प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग

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बुधवार, 31 मार्च 2010

गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ?

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अदेह के सदेह प्रश्न कौन गढ़ रहा कहो
गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ?
मुझे जिस्म मत कहो चुप रहो मैं भाव हूँ
तुम जो हो सूर्य तो रश्मि हूँ प्रभाव हूँ !!
मुझे सदा रति कहो ? लिखा है किस किताब में
देह पे ही हो बहस कहा है किस जवाब में
नारी  बस देह..? नहीं प्रचंड अग्निपुंज भी
मान जो उसे  मिले हैं शीत-कुञ्ज भी !
चीर हरण मत करो मत हरो मान मीत
भूलो मत कुरुक्षेत्र युद्ध एक प्रमाण मीत !
जननी हैं ,भगनी है, रमणी हैं नारियां -
सुन्दर प्रकृति की सरजनी हैं नारियां 
हैं शीतल मंद पवन,लावा  ये ही तो हैं
धूप से बचाए जो वो  छावा यही तो हैं !
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhEUQ1KdaNguYmgrSYD0iI2lbTHIQg1c61cnUPSPm5xxCYPmHXotRHecFtltObYE7emWj1AzYyPXypeFtqBQ7Zy8nNix1huJM9j2q92qAkAyrySdkSHDFDIM3FjpN6EnT6KXnAad-5930Lj/s320/Woman4.jpg

रविवार, 28 मार्च 2010

बदमाश हवा ने कहा

जानती हो स्वप्न प्रिया इस गुलाब के कानों में बदमाश हवा ने कहा कि  कोई भ्रमर तुमसे अभिसार को आ रहा है और झट उसने सर ठीक वैसे ही झुका लिया जैसे कि तुम जब मुझसे पहली बार मिली थीं .... और मैंने बिन कहे अपने इश्क का इज़हार किया था............तुम्हारी याद में मैंने भी तस्वीर कैद कर ली मोबाइल कैमरे में और तुम्हारी तस्वीर के पीछे लगा ली है.  स्मृतियों को सजीव रखने का एक तरीका है प्रिये ....!
आज मुझे धन कमाने तुमसे दूर जाना  और फिर अचानक तुम्हारा मुझसे बिछड़ना मेरी तड़प का कारण है आज मैं तुमसे दूर हूं पास है खूब अकूत धन किन्तु वो संतोष  जो तुम एक क्षण मुस्कराहट के ज़रिये भेजतीं थीं मेरे ज़ेहन तक इस अकूत धन में कहाँ 

मंगलवार, 23 मार्च 2010

मेरे इश्क की तासीर यही है

अक्सर
प्रीत की मदालस गंध के बीच
आ जाती है बेपरावह सी
रिश्तों की कतरनें
जो बिखेरदीं  गईं हैं जान बूझकर
 शायद इस लिये भी की बना रहे अनुशासन
तुम मुझे प्रीत थी है और रहेगी
 बस तुम्हारा इंतज़ार करता रहूँगा हाँ, मैं तुमसे प्यार करता रहूँगा
मुझे  आदत है
सहने की चुप रहने की
मुझे देह से नहीं तुमसे प्यार है
मुझे बस तुम्हारी प्यार भरी बातों से सरोकार है
तुम पास नहीं साथ नहीं
फिर भी तुम्हारा प्यार तो है
हां  मेरी जागीर यही है
मन में मेरे धीरज है
तुम पिघलोगी मुझे यकीन है
पिघला देता हूँ मैं पत्थर को मोम सा
सच मेरे प्यार की /मेरे इश्क की तासीर यही है

मंगलवार, 2 मार्च 2010

तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ !!

वीणा की इस कविता वाले टी शर्ट होली वाले दिन पहन कर विदा कह दिया शायद ही  मै इसे अब पहन सकूं किन्तु सम्हाल के रख दिया कवर्ड में.................. !
और उग आई एक प्रेम कविता देखिये 
तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ !!
एक अधूरी चाह से तुम 
टुकुर टुकुर निहारती मुझे 
और मैं हूँ की अनदेखा करने का प्रयास करता
फिर भी तुम नि:शब्द हो
मुझे दूर तक निहारतीं हो टुकुर टुकुर 
चलो ! मान भी लूं कि तुम मुझे प्यार करती हो हो तो 
क्यों नहीं कह देतीं कि :'मुझे प्रीत है '
प्रिये !
तुम्हारी निगाहों से बिखरती आवाज़ को तुम 
शब्दों की प्लेट में 
साजों कर बस एक बार कह दो 
कि मुझसे प्यार है.....
मैं प्रीत की मदालस गंध में खोया हूँ 
जो पूरती है व्योम की ताम्र-वर्णी
आचार संहिता को ...
मुझे तुम्हें पाना है 
इस से ज़्यादा ज़रूरी है तुम मुझे छीन लो 
चलो अनुशासन और आचार संहिता को
लांघ दो 
मैं आस पास खिंच गई लक्ष्मण रेखा को 
पार करना चाहता हूँ 
तुम्हें खुल कर जी भर प्यार करना चाहता हूँ........
और फिर ये रही मेरी टीशर्ट

गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया

  जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर जबलपुर   का   गरबा   फोटो   अरविंद   यादव   जबलपुर गुजरात   के व्यापारियो...