प्रीत का यह रूप मेरे अंतस को छू गया शायद आप भी पसंद करेंगे
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
शनिवार, 16 जनवरी 2010
झूठ है आज का ग्रहण सबसे लंबा ग्रहण नहीं था
इस गतिमान चित्र को देख आपकी याद ताज़ी हो जावेंगी विकी पीडिया पर इस तस्वीर को देखिये आज दिन भर खबरीले चेनल्स इस खबर के साथ उसी तरह घिस्सा-पीटी करते रहे जैसे अन्य खबरों के संग साथ की जाती है. अब इस तस्वीर को गौर से देखिये एक भारतीय पुरुष की वैवाहिक ज़िंदगी और इस तस्वीर में काफी समानता मिलेंगी....? इधर दिन भर हमको सरकारी छुट्टी न मिलने के कारण दु:खी हमारी श्रीमती जी ने अंत तया आधे दिन का अवकाश आवेदन रखवाकर घर वापस बुला ही लिया. हम भी घर में ठीक सूरज भगवान की तरह कैद करा दिए गए...! बस श्रीमती जी ने स्टार न्यूज़ से लेकर जाने कितने चैनल बदल बदल के देखे दिखाए . बोलीं देखो :यह महा ग्रहण है तुम्हारी राशि पर ठीक भी नहीं है . तुम भीतर ही रहो. काफी मान- मनौअल के बाद छत पर साथ-साथ जाने की अनुज्ञा मिली, सो हमने डिज़िटल कैमरे से फोटो लेनी चाही हमारी इस चाहत को सिरे से खारिजी दी गई ...
इस हार से हारे हमने कहा :- जानेमन, वाकई लंबा ग्रहण है..?
हाँ ..न..!देखिये , चैनल वाले बता रहे थे सात सौ साल बाद आया फिर हज़ार साल बाद आयेगा
''अच्छा ?''
और क्या. तुम भी न ?
हमने पूछा -तो यह ग्रहण सबसे लम्बी अवधी का है ?
''हाँ,भाई हाँ सच यही है .
हम बोले झूठ सफ़ेद झूठ
उन्हौने पूछा :- तो बताओ सच क्या है ?
सच बताऊँ बुरा तो न मानोगी ?
बताओ तो इतनी पहेलियाँ मत बुझाओ जी
तो सुनो सात मार्च १९९२ से जो ग्रहण लगा है उसका निग्रहण अभी तक नहीं हो पाया वो लंबा ग्रहण है की ये वाला ..?
अपनी वैवाहिक वर्षगाँठ को इस तरह सुनते थोड़ा रूठीं तो पर हमने मना लिया किन्तु इस चुहल में अपना अलग आनंद था .
इस
इस हार से हारे हमने कहा :- जानेमन, वाकई लंबा ग्रहण है..?
हाँ ..न..!देखिये , चैनल वाले बता रहे थे सात सौ साल बाद आया फिर हज़ार साल बाद आयेगा
''अच्छा ?''
और क्या. तुम भी न ?
हमने पूछा -तो यह ग्रहण सबसे लम्बी अवधी का है ?
''हाँ,भाई हाँ सच यही है .
हम बोले झूठ सफ़ेद झूठ
उन्हौने पूछा :- तो बताओ सच क्या है ?
सच बताऊँ बुरा तो न मानोगी ?
बताओ तो इतनी पहेलियाँ मत बुझाओ जी
तो सुनो सात मार्च १९९२ से जो ग्रहण लगा है उसका निग्रहण अभी तक नहीं हो पाया वो लंबा ग्रहण है की ये वाला ..?
अपनी वैवाहिक वर्षगाँठ को इस तरह सुनते थोड़ा रूठीं तो पर हमने मना लिया किन्तु इस चुहल में अपना अलग आनंद था .
इस
शनिवार, 9 जनवरी 2010
अणु-अणु सँवर-सँवर तिल-तिल मिट-मिट पूरा करार करतीं हूँ
उमर-खैयाम की रूबाइयों के अनुवादक पंडित केशव पाठक के बारे में जितना लिखा जाए अंतर जाल के लिए कम ही है मुझे विस्तार से जानकारी न होने के कारण जो भी लिख रहा हूँ श्रुति के आधार पर फिर भी कुछ जानकारीयां उपलब्ध किताब में मिलते ही लोभ संवरण न कर सका जाने क्यों मुझे लग रहा है कि अगर संस्कारधानी के इस सुकवि को अभी न उकेरा गया अंतरजाल पर तो शायद फिर कौन कब करेगा यह काम जो ज़रूरी है ...........?
अस्तु ! आपका परिचय स्वर्गीय केशव पाठक से करा दूं उनके इस प्रेम गीत के ज़रिये
सुकवि ने उमर-खैयाम की रुबाइयात का हिंदी तर्जुमा जिस सहजता से किया वो समझने काबिल है
अंग्रेजी : AWAKE ! for Morning in the bowl of night
Has flung the stone that puts the starts to flight
And lo ! the Hunter of the East has caught
The Sultan's Turret in a Noose of ligth .
* हिंदी : जाग ! प्रात ने फैंका निशि के पेय पात्र में अरुण उपल अस्तु ! आपका परिचय स्वर्गीय केशव पाठक से करा दूं उनके इस प्रेम गीत के ज़रिये
सखी,मैं उसे प्यार करतीं हूँ :
दिनमणि से ले किरण कान्ति की
मधुऋतु से यौवन की काया
कुसुम-सुरभि से मृदुल प्राण ले
सुरधनु से सतरंगी माया
निशि-तम में अभिसार,दिवस-आभा में मिल विहार करतीं हूँ .
सखी,मैं उसे प्यार करतीं हूँ
आमन्त्रं बंधन को दे
बंदी-जीवन स्वीकार किया है
बन कर मिटने का केवल
मैनें उअसे अधिकार लिया है..
अणु-अणु सँवर-सँवर तिल-तिल मिट-मिट पूरा करार करतीं हूँ
सखी,मैं उसे प्यार करतीं हूँ
उसके रंग महल में मेरी
स्नेहमयी यह जीवन बाती,
उसकी ही इच्छा से जलती
उसके इंगित पर बुझ जाती
दृग-युग से जल बुझ उसकी क्रीडा ही का प्रसार करतीं हूँ
सखी,मैं उसे प्यार करतीं हूँ
अली,बावला ज्ञान, छायामय
जीवन मेरा व्यर्थ बखाने ,
मैंने तो चिर सहचरी छाया
बन कर अपने प्रिय पहचाने
अपने पन की नहीं आज मैं छाया की पुकार करतीं हूँ
सखी,मैं उसे प्यार करतीं हूँ
दिनमणि से ले किरण कान्ति की
मधुऋतु से यौवन की काया
कुसुम-सुरभि से मृदुल प्राण ले
सुरधनु से सतरंगी माया
निशि-तम में अभिसार,दिवस-आभा में मिल विहार करतीं हूँ .
सखी,मैं उसे प्यार करतीं हूँ
आमन्त्रं बंधन को दे
बंदी-जीवन स्वीकार किया है
बन कर मिटने का केवल
मैनें उअसे अधिकार लिया है..
अणु-अणु सँवर-सँवर तिल-तिल मिट-मिट पूरा करार करतीं हूँ
सखी,मैं उसे प्यार करतीं हूँ
उसके रंग महल में मेरी
स्नेहमयी यह जीवन बाती,
उसकी ही इच्छा से जलती
उसके इंगित पर बुझ जाती
दृग-युग से जल बुझ उसकी क्रीडा ही का प्रसार करतीं हूँ
सखी,मैं उसे प्यार करतीं हूँ
अली,बावला ज्ञान, छायामय
जीवन मेरा व्यर्थ बखाने ,
मैंने तो चिर सहचरी छाया
बन कर अपने प्रिय पहचाने
अपने पन की नहीं आज मैं छाया की पुकार करतीं हूँ
सखी,मैं उसे प्यार करतीं हूँ
अंग्रेजी : AWAKE ! for Morning in the bowl of night
Has flung the stone that puts the starts to flight
And lo ! the Hunter of the East has caught
The Sultan's Turret in a Noose of ligth .
नभ मंडल में मची खलबली,हरिन हो गया तारक दल
ले ! पूरवी शिकारी ने अपना किरनीला फंदा फैंक
सुल्तानी गुम्बज़ ली बाँध,देख,उठ कर तू भी तो देख
शनिवार, 2 जनवरी 2010
प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम
प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम,
बाजे मन अकुलाए।
जोगी मन को करे बिजोगी,
नैनन नींद चुराए।।
बाजे मन अकुलाए।
जोगी मन को करे बिजोगी,
नैनन नींद चुराए।।
बोले जो मिसरी रस घोले,
थकन हरे पूछ के कैसे?
बसी श्यामली मन में,
धड़कन का घर हिय हो जैसे,
मिलन यामिनी, मद मदिरा ले, जग के दु:ख बिसराए।
थकन हरे पूछ के कैसे?
बसी श्यामली मन में,
धड़कन का घर हिय हो जैसे,
मिलन यामिनी, मद मदिरा ले, जग के दु:ख बिसराए।
कटि नीचे तक, लटके चोटी,
चंद्र वलय के से दो बाले।
ओंठ प्रिया के सहज रसीले,
दो नयना मधुरस के प्याले।
प्रीति प्रिया की, धवल पूर्णिमा, नित अनुराग जगाए।
चंद्र वलय के से दो बाले।
ओंठ प्रिया के सहज रसीले,
दो नयना मधुरस के प्याले।
प्रीति प्रिया की, धवल पूर्णिमा, नित अनुराग जगाए।
नयन बोझ उठाए क्षिति का,
तारों में अपने कल देखे।
इधर बावला धीरज खोता -
गीत प्रीत के नित लेखे।।
प्रीत दो गुनी हुई विरह में, मन विश्वास जगाए।
तारों में अपने कल देखे।
इधर बावला धीरज खोता -
गीत प्रीत के नित लेखे।।
प्रीत दो गुनी हुई विरह में, मन विश्वास जगाए।
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