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मंगलवार, 23 नवंबर 2010

रात एक चुड़ैल आती है इधर

बैसाख-नंदन
.गांव से आज ही आया था दत्ते . छोटे और मझौले किस्म के शहरों कस्बों से आये लड़के  भौंदू श्रेणी के माने जाते हैं शुरु-शुरु में दत्ते भी उसी श्रेणी में रखा गया रखा क्या गया था ही उसी श्रेणी का - चेहरा क्या एक पपीता जो सीधा बिना गरदन के सहारे सीधा शरीर के शेष भाग से संबद्ध था. कॉलेज हास्टल में एक रूम में दो लड़को की व्यवस्था थी. .व्यवस्था के मुताबिक़ क्रमश: दो-दो लड़कों को एक एक कमरे दिए गए उनके आने के हिसाब से. दत्ते को मिला रूम पार्टनर हरीप्रसाद उर्फ़ एच०पी० पांडे    कथा का सिलसिला आगे बढाते हुए आपको बता दूं कि दत्ते का नाम उसके दांत बाहर होने की वज़ह से दत्ते हुआ वरना अच्छा खासा मां-बाप का दिया हुआ नाम था देवेन्द्र कुमार द्विवेदी .पिता इंजिनियर थे खूब कमाई वाले महकमे में . गांव का छात्र  बड़े शहर के बड़े कालेज में जाता है तो उसे सब कुछ अजीबोग़रीब लगता है. बाप ने जुगाड़ों  की ऐसी रस्सी सेट की कि दत्ते को दाखिला मिल गया तो आगे का हाल ये है कि :-
अल्ल सुबह बाथरूम में दीवार पर चिपकी  बिंदी    देख कर वो अचानक अजीब सी सिहरन से सराबोर हो गया. उस तरुणी का माथा याद आ गया जो उसके पड़ोस में रहा  करती थी. ओर यह उस पर आसक्त सा था. किस्म-किस्म की बिंदियां लगाती थी सुमन . सुमन ने कभी भी इस गधे को घास न डाली पर दत्ते उसके रूपलावण्य के घास टुकुर टुकुर ताकते-ताकते नज़रों से खाकर बैसाख-नन्दन सा तृप्त हो जाता था. हां तो हुआ यूं कि बाथरूम से निकल कर रूम पार्टनर हरिया से :-भाई देखो, बाथ रूम में कौन बिंदियां चिपका गया.

हरिया:- अरे होगा कोई. चल अभी चलते हैं क्लास में देर न हो जाए.
                दत्ते के सुबह के सवाल से हरिया का दिमाग  शरारत से भर गया  सो उसने शाम को बाज़ार से कई किसम की बिंदियां खरीदीं . और बस रात को चुपचाप बाथरूम में जाकर चिपका दीं. दूसरी सुबह फ़िर वही सवाल हरिया बोला:- अबे, सब तेरा वहम है. रात अपने दरवाज़े अंदर से बंद होते हैं. कौन घुसेगा बता...?
हां यार ये तो सोचाईच्च नईं ! हा हा हा
और दौनों मित्र निकल पड़े क्लास के लिये.रात को  फ़िर हरिया ने  पुरानी बिंदी हटाके नई-डिज़ायनर बिंदी चिपका दीं. तीसरी सुबह तो दत्ते के पसीने छूट गये. बोला भाई  अब तू मान या मान सही तो ये है कि कोई चुड़ेल आती है.
हरिया ने खूब समझाया पर वो कहां मानने वाला था.दिल पर छाई सुमन की जगह अब मनोहर-कहानी (जो किताब वो बाबूजी से छिप-छिप के बांचता था)भूत प्रेत विषेशांक में छपी डायन की बिंदी कहानी वाली डायन ने ले ली. ...थी. ! बस अगले ही दिन दत्ते घर वापस . जाने की तैयारी में जुट गया. क्लास में मन न लगा शाम बीमार होने का अभिनय करते हुये अटैची पैक कर ही रहा था कि आस पास के कमरों वाले लड़के जुडे हरिया उसे बताया :-"मूर्ख, ये देख मेरे पास हैं बिंदी के पत्ते मैं बाज़ार से ख्रीद लाया तेरे मन का भय पहचान लिया था मैने ?" सारे लड़के ठहाके मार मार के हंस रहे थे. पर दत्ते के दिल का भीरूपन न निकला . उसने मान तो लिया किंतु इस भय से कि हरिया उसे और भी डरा सकता है भविष्य में रूम बदलने की अर्जी दे आया.   


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