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सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

अंतिम कविता 01 : तुम खूबसूरत हो

तुम
http://www.loksatta.com/daily/20030315/ext01.jpg
साभार : लोकसत्ता
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन  अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा

10 टिप्‍पणियां:

  1. कागल भाई
    यह कविता एक मरणासन्न व्यक्ति का मृत्यु-सुंदरी से सम्वाद है अत: व्यक्तिगत कविता कदापि नहीं है.....ये नैराश्य की जीवल से उकताहट की कविता भी है. काजल भाई एवम समीर भाई दौनों का शुक्रिया

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  2. शाश्वत पावन अभिसारिका
    तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा
    प्रतीक्षारत ... अनवरत ... शाश्वत

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रतीक्षा है अभिसारिका के बाहुपाश की
    लेकिन ये होती बड़ी बेरहम है
    किसी पर रहम नहीं करती
    बचना चाह कर भी नहीं बच पाते
    हजार तालों से बाहर निकाल लाती है।
    मधुबाला ढूंढ लेती है मद की खुश्बु

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्‍दर, अनुपम प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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