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शनिवार, 2 जनवरी 2010

प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम

प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम,
बाजे मन अकुलाए।
जोगी मन को करे बिजोगी,
नैनन नींद चुराए।।
बोले जो मिसरी रस घोले,
थकन हरे पूछ के कैसे?
बसी श्यामली मन में,
धड़कन का घर हिय हो जैसे,
मिलन यामिनी, मद मदिरा ले, जग के दु:ख बिसराए।
कटि नीचे तक, लटके चोटी,
चंद्र वलय के से दो बाले।
ओंठ प्रिया के सहज रसीले,
दो नयना मधुरस के प्याले।
प्रीति प्रिया की, धवल पूर्णिमा, नित अनुराग जगाए।
नयन बोझ उठाए क्षिति का,
तारों में अपने कल देखे।
इधर बावला धीरज खोता -
गीत प्रीत के नित लेखे।।
प्रीत दो गुनी हुई विरह में, मन विश्वास जगाए।

2 टिप्‍पणियां:

  1. सादर वन्दे
    इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है
    शिंह से बाहें मिलकर खेल सकता है
    शक्ति के रहते वो निरुपाय हो जाता,
    बिछ जो जाता बंकिम नयन के बाण से
    जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से
    रत्नेश त्रिपाठी

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