मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम
मन अनुरागी जोगी तेरा
हम-तुम में कैसी ये अनबन
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कितने रुच रुच नेह निवाले
सोच सोच कर रखतीं हो !
एकाकी होती हो जब तुम
याद मेरी कर हंसती हो !
मत रोको अब प्रेम धार को
कह दो कब होगा मन संगम
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम..!
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पीत-वसन -प्रीत भरा मन
पल-पल मुझसे मिलने आना
कोई और निहारे मुझको
बिना लपट के वो जल जाना
प्रेम पथिक हम दौनों ही हैं
प्रिय तुम ही अब तोड़ो मन संयम !
मन की सूती जिज्ञासा को
काँटों पर मत रखना प्रियतम..!
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चित्र साभार:स्वप्न मंजूषा शैल व्हावा http://mishraarvind.blogspot.com
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