प्रिया,सहज ही तुमने क्योंकर
भेजा मुझ तक प्रीत निमंत्रण ..!
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मैं विरही हूँ तुम प्रतिबंधित
हर आहट पे हुए सशंकित
चिंता भरे हरेक पल मेरे
मन बिसरा करना अब चिंतन !
हूक उभरती तुम्हें याद कर
बिना मिलन हर जीत विसर्जन !
प्रिया,सहज ही तुमने क्योंकर
भेजा मुझ तक प्रीत निमंत्रण ..!
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तुम्हें खोजतीं आंखें मेरी
टकटक शशि की ओर निहारें !
तुम उस पथ से आतीं होगी ,
सोच के अँखियाँ पंथ-बुहारें !
तुम संयम की सुदृढ़ बानगी
मैं संयम से सदा अकिंचन !
प्रिया,सहज ही तुमने क्योंकर
भेजा मुझ तक प्रीत निमंत्रण ..!
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