सुभगे उर्मिला
तुमने मेरे दिए हुए
अश्रु सजा लिए अपनीं पलकों पर
निस्तब्ध/नि:शब्द
ताकती आकाश को
कदाचित मेरे दिए गए अश्रु-उपहार/मेरी अमानत के
बिखर जाने के भय से
तुम जो निस्तब्ध/नि:शब्द/स्थिर हो
सच उर्मिले
मन प्राण से तुम्हारा लक्ष्मण आज प्रतिज्ञा और संकल्प का
निबाहने तुम से दूर है
यहीं से
तुम्हारी तापस देह को
देख रहा हूँ.......
सुभगे
राम के साथ मैं सा-शरीर हूँ किन्तु
तुम चौदह बरस तक यूं ही
पथराई-प्रतीक्षिता
किसी युग में ऐसी सहचरी किसी को भी न मिलेगी यह तय है
प्रिये
तुम्हारी पावन प्रीत के आगे मैं नत मस्तक हूँ
तुम्हारा अपराधी हूँ
तुम जो साक्षात "प्रेम-देवी हो"
तुम्हें नमन सदैव
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
गुजरात का गरबा वैश्विक हो गया
जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर गुजरात के व्यापारियो...
-
तुम चुप क्यों हो कारण क्या है ? गुमसुम क्यों हो कारण क्या है ? जलते देख रहे हो तु...
-
तूने दस्तक ज़रूर दी होगी..? मै वो आवाज़ नहीं सुन पाया कितनी आवाज़ें गिर्द मेरे हैं तेरा एहसास नही हो पाया ! ************** हर तरफ़ शोर ...
-
पाकिस्तान में महिला अधिकारों को लेकर हम सब केवल इतना जानते हैं कि वहां महिलाओं को कोई खास अधिकार प्राप्त नहीं है। परंतु हिंदूकुश...
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
जवाब देंहटाएंhttp://voi-2.blogspot.com KI YE PAHLI POSTING BEHAD HI JABARDAST HAI... SUR, LAY AUR TAAL KE SATH AWAZ, ANDAAZ AUR ALFAAZ BHI SHANDAR!..
जवाब देंहटाएंWARM REGARDS
RAM K GAUTAM