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सोमवार, 7 दिसंबर 2009

तुम यौवन की राजकुमारी में पीड़ा शहजादा हूँ


मन प्रियतम का प्रेम पिपासु  अपलक  तुम्हें निहारूं प्रियतम
सभागार में बोलूँ कैसे ? नयनन शब्द उचारूं  प्रियतम..!

चपल अधिक हिरनी से भी  तुम, मैं मर्यादा से  तागा हूँ

  भयवश दूर  न हो जाओ मुझसे   कैसे कहो  पुकारूं प्रियतम !
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जो कहना है  साफ़ कहो प्रिय चुप रहने से न बेहतर है
मुझे प्रीत दो अथवा पीड़ा, सब कुछ तुम पर ही निरभर है
चलो पीर ही दे दो मुझको अपने गीत निखारूँ प्रियतम !
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8 टिप्‍पणियां:

  1. तुम यौवन की राजकुमारी में पीड़ा शहजादा हूँ
    हिरनी से भी अधिक चपल तुम, मर्यादा से मैं तागा हूँ

    -सुन्दर पंक्तियां.

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  2. भय वश भाग न जाओ मुझसे कैसे तुम्हें पुकारूं प्रियतम'
    शायद यही भय है जो अव्यक्त रह जाने की पीडा लिये उम्र भर सालता रहता है.
    बेहतरीन पंक्तिया - सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. ह्रदय उदगार प्रकट कहने का अनुरोध बहुत सुरीला है ....
    सुन्दर ...!!

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  4. सुंदर पंक्तियों के साथ ......... सुंदर पोस्ट...........

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  5. शुक्रिया जी
    वाणी जी महफूज़ भाई, सुमन जी, वर्मा जी
    आभार
    प्रथम प्रीत की बातें हैं
    गीत वहीं तक जाते हैं

    जवाब देंहटाएं
  6. तुम यौवन की राजकुमारी में पीड़ा शहजादा हूँ। वाह वाह आज तक तो नारी की पहचान ही पीडा से सुनी थी । मगर शह्ज़ादा ? वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। निशब्द कर दिया इस रचना ने शुभकामनायें

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  7. वर्मा जी अब देखिये
    भयवश दूर न हो जाओ तुम कैसे कहो तुम्हें पुकारूं प्रियतम !
    कपिला जी कवि-मन तो नारी से भी कोमल होता है
    आप तो जानतीं है "आह से पहले गान का उपजना "

    जवाब देंहटाएं

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