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गुरुवार, 19 नवंबर 2009

मेलोडी ऑफ़ लव

                                                                  हिन्दी  फिल्मसंगीत और प्रेम में गहरा अंतर्संबंध माया नगरी के चितेरों ने उन दिनों सदाबहार गीतों से जोड़ लिया था सारे देश को.   सच्चाई  छुप  नहीं  सकती,ओ  मेरी  शर्मीली ,अजनबी  तुम  जाने  पहचाने ,ये  जो  मोहब्बत  है ,माना  जनाब  ने  पुकारा  नहीं
    इन गीतों को सुन कर आपके सारे तनाव दूर हो जाएंगें यकीनन   किशोर  दा की आवाज़ का कोई विकल्प दूसरा .......? आज के दौर में कोई नहीं . उस दौर की इस आवाज़ की कशिश से तो आप परिचित ही है ओह  रे  ताल  मिले  नदी  के  जल  में सुनके तो आप मस्त हो ही जाएंगें . अरे जी लता जी को मैं क्यों भूलूं इस गीत को सुन के उनकी याद में कोरें भीग गईं आप भी सुनिए   आजा  पिया  तोहे  प्यार  दूं  और  हाँ  उनकी याद में जिनके लिए गुनगुनाया करता था मैं ये गीत "कितना  प्यारा  वादा  है  "कभी क्वाबों में सोचता कि  मेरे  सपनों  कि  रानी कब आयेगी  जी हाँ तब जब उनके बिना ज़िंदगी काटनी पडी तो जब भी पहली प्रीत याद आती है यही गाने गुनगुनाने को मन करता है:-"दिल  जो  न  कह  सका " तुम भी तो यही कुछ गुनगुनाया करतीं थीं है न कुछ यूं दिल  जो  न  कह  सका तय तो  " दूर निकल चलना "
फिर क्यों रुक गए थे तुम्हारे कदम शायद हम तुम हताश थे अपनी अपनी प्रतिबद्धताओं के निर्वहन के लिए बंधे अब उस दौर के गीत गुम  हुए इस शोर गुल में मेरा नीला  आसमान  सो  गया सच अब तो बस ख़्वाब  में कभी ये चित्र चलतें हैं ये   कहाँ  आ  गए  हम ?
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साभार:-http://www.in.com/ 
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